आप अगर बनारस के किसी भी आम नागरिक से होली के अवसर पर अस्सी क्षेत्र में होने वाले कवि सम्मलेन के बारे में पूछेंगे तो उसकी आँखों में अचानक चमक आ जाएगी , चेहरे पर हल्की मुस्कान के साथ - साथ उसका दर्द छलक उठेगा और वो बोलेगा कि अब कहाँ रह गया वो सब। पर मैं आपको सशर्त बता दूँ कि ये चर्चा यहाँ समाप्त नहीं होगी। आप पूछें या नहीं वो खुद अतीत के पन्नों में कही खो जाएगा और फिर आपको बताना शुरू करेगा कि वो जमाना ही कुछ और था। भव्य आयोजन हुआ करता था , सांढ़ बनारसी , चकाचक बनारसी और अन्य कवि मंच पर विराजमान होते थे , शहर का कोई गणमान्य अतिथि ऐसा नहीं होता था जो वहां मौजूद न होता हो और कविताओं में भाषा की कोई ऐसी मर्यादा नहीं होती थी जिसे कवियों द्वारा लांघा न जाता हो। साथ ही वो अपनी बात ख़त्म करेगा यह बोलते हुए कि अब सब ख़त्म हो गया। जितने भी नामचीन कवि थे सबकी मृत्यु हो गई और उसके साथ ही कवि सम्मलेन का भी अंत हो गया। अब सम्मलेन ...