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Showing posts from March, 2018

लिखना शुरू करो....!

लिखना शुरू करो। यकीन मानिये इन शब्दों ने अचानक मेरी अंतरात्मा को झंकझोर कर रख दिया। लगा जैसे बरसों की कोई बिछड़ी हुई चीज फिर सामने दिखाई देने लगी हो और जैसे अँधेरे कमरे में अचानक प्रकाश ने अपनी जगह बना ली हो। यह वाक्य जितना सरल है इसका मतलब उतना ही क्लिष्ट है। कम से कम मेरे लिए इन शब्दों का बड़ा महत्व है।   कहते हैं एक पत्रकार के लिए लिखना और पढ़ना ही उसका जीवन होता है। वह जितना ज्यादा पढ़ेगा उतना उसको ज्ञान अर्जन होगा और जितना ज्यादा लिखेगा उतना उसकी लेखनी सहज होगी और लोगों को उसका लेख पढ़ने , समझने और उस लेख के साथ खुद को जोड़ने में आसानी होगी। पर जब कोई किसी पत्रकार को यह कहे की 'लिखना शुरू करो' तो इससे बड़ा व्यंग्य नहीं हो सकता। हालाँकि मेरे लिए इस व्यंग्य ने उस संजीवनी का काम किया है जिसको अपनाने के बाद मुझे उस सुख की फिर से अनुभूति हुई है जिससे पिछले कुछ महीनों से मैं वंचित था। इन शब्दों ने मेरे अंदर लिखने की वो लल