काशी
हिन्दू विश्वविद्यालय का प्रांगण
किसी भी छात्र
के लिए किसी
मंदिर से कम
नहीं है..सर्व
विद्या की राजधानी
कहे जाने वाले
इस विश्वविद्यालय से
निकले हुए छात्रों
ने ना सिर्फ
देश बल्कि विदेशों
में भी ऊँचा
नाम कमाया है
और यही वह
गौरवशाली इतिहास है जिसके
बदौलत आज देश
के सभी छात्रों
का सपना होता
है कि वे
अपनी पढ़ाई काशी
हिन्दू विश्वविद्यालय या बीएचयू
से पूरी करें..
मालवीय
जी की कठिन
तपस्या का परिणाम
है काशी हिन्दू
विश्वविद्यालय जिसने पूर्वांचल सहित
पूरे प्रदेश और
देश के विभिन्न
भागों से आए
छात्रों के लिए
समुचित शिक्षा और मार्गदर्शन
का काम किया
है..1300 एकड़ मे
फैले इस अर्ध-चंद्राकार प्रांगण में
पढ़ने वाला हर
छात्र बड़े गर्व
से यह कहता
फिरता है कि
वह बीएचयू का छात्र
है, जिसमे मैं खुद शामिल हूँ, और
सामने वाला व्यक्ति
भी उसे समुचित
इज्जत देता है..
पर
हाल के दिनों
में प्रांगण से
जो घटनाएं ख़बरों
में आयी उससे
दिल दहल गया..प्रदर्शन, आगजनी, लाठीचार्ज
और यहाँ तक
कि कुछ लोगों
ने मालवीय जी
कि मूर्ति पर
कालिख पोतने तक
का दुस्साहस कर
डाला..एक लड़की
के साथ छेड़छाड़
के विरोध में
बच्चियों ने प्रदर्शन
शुरू किया, जो
जायज़ था..पर
धीरे-धीरे उस
प्रदर्शन को ऐसी
हवा दी गई
कि अब उन
बच्चियों के अलावा
वहां हर वो
शख्स मौजूद दिख
रहा था जिसे
उस प्रदर्शन से
अपना स्वार्थ सिद्ध
करना था..फिर
अचानक एक दिन
ऐसी खबर आई
कि एक लड़की
को बालों से
घसीटा गया और
उसके साथ बदतमीजी
की गई, तो
मन में यह
सवाल खुद-ब-खुद उठ
खड़ा हुआ की
क्या विश्वविद्यालय प्रांगण
में जंगलराज कायम
हो गया है?
काशी
हिन्दू विश्वविद्यालय का पूर्व
छात्र और बनारस
का मूल निवासी
होने के नाते
मैं यह विश्वास
के साथ कह
सकता हूँ की
विश्वविद्यालय का प्रांगण
ऐसा नहीं है..
युवा
वर्ग के हज़ारों
छात्रों की मौजूदगी
में बीएचयू का
प्रांगण हमेशा मुस्कुराता हुआ
प्रतीत होता है..जहाँ युवाओं
का जमावड़ा होगा
वहां हंसी-ठिठोली,
छींटाकशी और यदा-कदा छेड़छाड़
का माहौल भी
होता है..ऐसा
नहीं है प्रांगण
एकदम सुरक्षित है
पर जो तस्वीर
मीडिया और राजनीतिक
दलों के द्वारा
देश में प्रस्तुत
की गई वैसा
तो बिलकुल नहीं
है..
जो
छेड़छाड़ बच्चियों के साथ
हुई वह दुर्भाग्यपूर्ण
है और उसका
संज्ञान लेकर विश्वविद्यालय
प्रशासन को कार्रवाई
करनी चाहिए थी,
जो नहीं हुई..जब बच्चियों
ने उपकुलपति से
मिलने का समय
माँगा तो महोदय
को प्राथमिकता से
समय देना चाहिए
था, प्रांगण में
किसी छात्रा के
साथ छेड़छाड़ के
मामले का संज्ञान
लेने से बड़ी
कोई प्राथमिकता नहीं
हो सकती थी..उपकुलपति महोदय को
यह याद रखना
चाहिए था की
सबसे पहले वो
वहां पढ़ रहे
छात्रों के अभिभावक
हैं और बाद
में विश्वविद्यालय के
उपकुलपति..प्रदर्शन के दौरान
भी पहले दिन
त्रिपाठी साहब को
बच्चियों से मिलकर
उनसे बात करनी
चाहिए थी और
मामले में उचित
कार्रवाई करनी चाहिए
थी, जो नहीं
हुई..ऐसे में
उपकुलपति का जाना
ही उचित था,
उन्हें लम्बी छुट्टी पर
भेजने के बजाय
तत्काल बर्खास्त करना चाहिए
था..
जब
बच्चियों ने प्रदर्शन
शुरू किया तो
उसे बहुत ज्यादा
महत्व नहीं दिया
गया..ये दुर्भाग्यपूर्ण
है..पर जब
तक प्रशासन को
यह बात समझ
आई तब तक
काफी देर हो
चुकी थी..राजनीतिक
दलों ने उन
बच्चियों के आंदोलन
पर तब तक
अपना आधिपत्य जमा
लिया था..कांग्रेस,
सपा, लेफ्ट सभी
के बड़े नेता
वहां पहुंच चुके
थे और प्रधानमंत्री
के दो दिन
के दौरे को
कैसे असफल बनाया
जाए इस जुगत
में एक विश्वविद्यालय
की गरिमा को
तार-तार करने
में उन्होंने कोई
कसर नहीं छोड़ी..
काशी
हिन्दू विश्वविद्यालय की नींव
मालवीय जी ने
दान में मिली
जमीन पर रखा
था..प्रमुख रूप
से काशी नरेश
ने इस नेक
काम में सहयोग
दिया था..परन्तु
विश्वविद्यालय के आसपास
के गाँवों के
लोगों ने भी
इस प्रांगण में
अपना योगदान दिया
था..मालवीय जी
ने उनके बच्चों
को रोजगार देने
का वादा किया
था साथ में
यह आश्वासन भी
दिया था की
प्रांगण के रास्ते
आदि उनके लिए
हमेशा खुले रहेंगे
और ग्रामीण उसका
उपयोग कर सकेंगे..इस कारण
प्रांगण में बाहरी
लोगों का आना
जाना लगा रहता
है..सर सुन्दरलाल
अस्पताल की वजह
से भी बहुत
से लोग अंदर
दाखिल होते हैं..
जहाँ
तक सुरक्षा का
सवाल है तो
प्रॉक्टर और उनके
सुरक्षाकर्मी इस कार्य
में लगे रहते
हैं..छात्राओं के
लिए त्रिवेणी हॉस्टल
के आसपास सुरक्षा
इतनी चाकचौबंद रहती
है की किसी
भी लड़के का
उसके आसपास रुकना
तब तक संभव
नहीं होता जब
तक वह हॉस्टल
की किसी लड़की
के साथ ना
खड़ा हो..हॉस्टल
की दूसरी तरफ
जो सड़क है
वहां NCC का ऑफिस
है जहाँ ट्रेनिंग
और अन्य क्रियाकलाप
होते रहते हैं..ऐसे में
वहां से लड़कियों
को इशारा कर
पाना मुश्किल होता
होगा, हालाँकि ऐसा
एकदम नहीं होता
यह भी नहीं
कहा जा सकता..
रही
बात पूरे प्राँगण
में सुरक्षा प्रदान
करने की तो
ऐसा संभव नहीं
हो सकता की
हर चप्पे पर
प्रॉक्टर मौजूद रहें, हाँ
पेट्रोलिंग की व्यवस्था
है और पेट्रोलिंग
होती भी रहती
है इस बात
से कोई इंकार
नहीं कर सकता..
एक
और शब्द जो
इस वाकये के
बाद पूरे देश
को जानने सुनने
को मिला वह
है 'लंकेटिंग'..बीएचयू
में पढ़ने वाले
किसी भी छात्र
से पूछें तो
वह बताएगा की
दिन भर कॉलेज
में बिताने के
बाद मन बदलने
के लिए लंका
पर घूमना, खाना-पीना और
जरुरत के सामान
की खरीददारी करने
को लंकेटिंग कहते
हैं..
पर
मैं स्तब्ध तब
रह गया जब
एक लेख में
मैंने पढ़ा की
लंका पर लड़कियों
को छेड़ने को
लड़के लंकेटिंग कहते है..इससे
ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक
कुछ नहीं हो
सकता और दरअसल
यह ऐसे किसी
नौसिखिये का लेख
है जिसे बनारस
और बीएचयू के
संस्कृति के बारे
में कुछ ना
पता हो और
संस्थान की नौकरी
बजाने के लिए
उसे यह लिखना
पड़ा हो..और
जहाँ तक लंकेटिंग
शब्द की बात
है तो यह
जितना छात्रों में
उतना ही छात्राओं
में भी लोकप्रिय
है..
असल
में लंका बीएचयू
से सटा हुआ
वह इलाका है
जहाँ किताब की
दुकानें, खाने-पीने
के स्टाल,, फलों
के जूस, पहलवान
की लस्सी और
दूध की दुकान
के साथ जरुरत
के अन्य सामानों
की अच्छी दुकानें
हैं जहाँ से
बच्चे अपने जरुरत
का सामान खरीदते
हैं...इसके साथ
ही संत रविदास
द्वार है और
बीएचयू के सिंघद्वार
के बाहर मालवीय
जी की मूर्ति
लगी है जिससे
उस स्थान की
शोभा और भी
बढ़ती है..
विश्वविद्यालय
प्रांगण के अंदर
विश्वनाथ मंदिर भी छात्रों
के लिए वह
स्थान है जहाँ
थोड़ी पूजा पाठ
के साथ चाय-समोसा और घूमना
फिरना होता है
जिसे वहां के
छात्रों की भाषा
में मस्ती करना
कहते हैं..यहाँ
भी सुरक्षा की
पूरी व्यवस्था रहती
है और प्रॉक्टर
के लोग यह
ध्यान देते हैं
की कोई भी
अप्रिय घटना ना
घटने पाए..
ऐसे
स्थानों पर छात्र-छात्राओं के बीच
हंसी-मज़ाक और
छींटाकशी होना आम
बात है..पर
इसे छेड़छाड़ का
दर्जा देना विकृत
मानसिकता का परिचायक
है..दुःख तो
तब होता है
जब वहां के
पूर्व छात्र भी
मुखर होकर विश्वविद्यालय
के बारे में
फैलाई जा रही
भ्रांतियों का विरोध
करने के बजाय
उसका समर्थन करते
नज़र आते हैं..
अंत
में सिर्फ इतना
कह सकता हूँ
की कमियां हैं
इनको नकारा नहीं
जा सकता पर
ऐसा नहीं है
की काशी हिन्दू
विश्वविद्यालय में जंगलराज
कायम है..जो
कमियां हैं वो
थोड़ी कम थोड़ी
ज्यादा हर जगह
है..जरुरत है
की छात्र और
प्रशासन मिलकर बात करें,
उन कमियों को
दूर करने का
प्रयास करें, ना की
किसी राजनीतिक साज़िश
का शिकार होकर
अपने भविष्य के
साथ खिलवाड़ करें..
काशी
हिन्दू विश्वविद्यालय का गौरवशाली
इतिहास इतना भव्य
है की इस
प्रकार की ओछी
घटनाओं और प्रयासों
से इसका कुछ
भी बिगड़ने वाला
नहीं है..यह
अनंतकाल तक ऐसे
ही बना रहे,
एक पूर्व छात्र
होने के नाते
मेरी शुभकामना है..
बहुत अच्छा वर्णित किया है हालातों को...मेरे ससुराल दुर्गाकुंड में आदरणीय एनी बेसेन्ट जी रहती थी और मेरे पर दादा ससुर ( श्री निवास जी ) जी के बिमार होने पर काशी हिंदू विश्वविद्यालय का आफिस दुर्गाकुंड स्थान्तरित कर दिया गया , विश्वविद्यालय से जुड़ी हर बात यहीं होती थी...इसी दौरान मालवीय जी ने एक प्रस्ताव रखा की लड़के और लड़कियां एक साथ पढ़ेगें और साथ रहेगें भी...बड़ी मुश्किल से उनको समझा बुझा कर महिला महाविद्यालय के लिये राज़ी किया गया ...कल्पना किजिए किस उँची विचारधारा के मालिक थे...आज महामना के पसीने से सिंचित विश्वविद्यालय की ये स्थिति हो गई हैं कि पचाना मुश्किल हो गया है...पूर्व छात्रा होने की वजह से तकलीफ और गुस्सा दोनो हैं !
ReplyDeleteबहुत अच्छा वर्णित किया है हालातों को...मेरे ससुराल दुर्गाकुंड में आदरणीय एनी बेसेन्ट जी रहती थी और मेरे पर दादा ससुर ( श्री निवास जी ) जी के बिमार होने पर काशी हिंदू विश्वविद्यालय का आफिस दुर्गाकुंड स्थान्तरित कर दिया गया , विश्वविद्यालय से जुड़ी हर बात यहीं होती थी...इसी दौरान मालवीय जी ने एक प्रस्ताव रखा की लड़के और लड़कियां एक साथ पढ़ेगें और साथ रहेगें भी...बड़ी मुश्किल से उनको समझा बुझा कर महिला महाविद्यालय के लिये राज़ी किया गया ...कल्पना किजिए किस उँची विचारधारा के मालिक थे...आज महामना के पसीने से सिंचित विश्वविद्यालय की ये स्थिति हो गई हैं कि पचाना मुश्किल हो गया है...पूर्व छात्रा होने की वजह से तकलीफ और गुस्सा दोनो हैं !
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