हिंदी हार्टलैंड कहे जाने वाले क्षेत्र के तीन राज्य मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों ने शपथ ली..इस दौरान पूरा विपक्ष एकजुट नजर आया..पर इस हार्टलैंड का सबसे बड़ा हिस्सा उत्तर प्रदेश और यहाँ की दो बड़ी पार्टियां समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का इन समारोहों से नदारद रहना बहुत कुछ कह गया..
दरअसल कांग्रेस को इन राज्यों में पूर्ण बहुमत नहीं मिल पाया (छत्तीसगढ़ को छोड़ कर) और सरकार बनाने के लिए समर्थन की जरुरत पड़ी तो इन दोनों पार्टियों ने मदद का हाथ तो बढ़ाया पर मायावती के शब्दों में- भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए मज़बूरी में कांग्रेस को समर्थन देना पड़ रहा है..
पर क्या कारण है की साथ होते हुए भी सपा और बसपा कांग्रेस से दूरी बना कर रखना चाहते हैं?
सपा और बसपा ने पिछले 15 सालों तक उत्तर प्रदेश में बारी-बारी शासन किया..पर 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने शानदार वापसी की..403 में से 312 सीटों पर विजय प्राप्त कर भाजपा ने एक तरह से इन दोनों पार्टियों का सूपड़ा साफ़ कर दिया..इससे पहले भी 2014 के आम चुनावों में 80 लोक सभा सीटों में से 71 सीटें भाजपा के खाते में गई, सपा को 5 और बसपा अपना खाता भी नहीं खोल पाई..
2014 के आम चुनावों में हार के बाद सपा और बसपा ने 2017 में कांग्रेस के साथ हाथ मिलाकर विधानसभा चुनाव लड़ने का फार्मूला भी अपनाया पर इससे उन्हें फायदा तो दूर उल्टा नुकसान झेलना पड़ा..
पर चाहे 2014 के आम चुनाव हों या 2017 का विधानसभा चुनाव, इन दोनों पार्टियों की कांग्रेस के साथ सीट के बंटवारे को लेकर तनातनी चलती रही..तो एक तरफ तो भाजपा की वजह से इन दोनों पार्टियों के अस्तित्व का सवाल खड़ा हो गया है वहीं दूसरी तरफ प्रदेश में मजबूत संगठन के बल पर कांग्रेस भी अपनी वापसी का रास्ता तलाशती नजर आ रही है..
उत्तर प्रदेश में सवर्ण वोटरों का भाजपा को समर्थन रहता है..ऐसे में दलित-मुस्लिम एकता की बात करने वाली कांग्रेस ने भी अगर अपनी वापसी की और राज्य में अपना प्रभाव छोड़ने में कामयाब रही तो दोनों राष्ट्रीय पार्टियों की लड़ाई में दोनों क्षेत्रीय पार्टियों की बलि चढ़ जाएगी..
यही कारण है की इन पार्टियों ने अन्य राज्यों में तो कांग्रेस का साथ दिया है पर जब बात उत्तर प्रदेश की होगी तो यह पार्टियां कांग्रेस को कभी मौका देना नहीं चाहेंगी..
ऐसे में आने वाले लोकसभा चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा की तथाकथित महागठबंधन में इन दोनों पार्टियों की क्या भूमिका होती है क्योंकि इन दोनों पार्टियों के बिना महागठबंधन का बन पाना संभव नहीं लगता..और अगर महागठबंधन उत्तर प्रदेश में भाजपा को कड़ी चुनौती नहीं दे पाया तो नरेंद्र मोदी को सत्ता से दूर कर पाना टेढ़ी खीर साबित होगा..क्योंकि भारतीय राजनीति में कहा गया है की दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से हो कर ही गुजरता है!
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